सोमवार, 13 जुलाई 2009
क्या आप भी इसकी गिरफ्त में हैं???
पारिवारिक संबंधों में ज़हर घोलते--- सीरियल
अपराध-अश्लीलता का पाठ पढ़ाती---फिल्में
तन-मन-जीवन को बीमार बनाते--- विज्ञापन
सांस्कृतिक मूल्यों को ध्वस्त करते---प्रोग्राम
कीमती समय को निगलते खेल बनाम व्यापार---क्रिकेट प्रसारण
वीभत्स आपराधिक घटनाओं को मनोरंजन बनाती---खबरें
क्या आप इसे "सूचना-शिक्षा-मनोरंजन" कहेंगे???
जरा सोचिये...
टीवी देखकर टाइमपास करना कितना खतरनाक हो सकता है!!!
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
शायद कभी था
जवाब देंहटाएं---
श्री युक्तेश्वर गिरि के चार युग