गुरुवार, 18 दिसंबर 2008

जीवन में ज़हर घोलती मीडिया

देश की संस्कृति को रौंद पश्चिम की बोल बोलती मीडिया


पत्रकारिता से आ गये हैं कितनी दूर ख़ुद अपनी पोल खोलती मीडिया


सूचना-शिक्षा-मनोरंजन के बहाने, जीवन में ज़हर घोलती मीडिया


"किसकी ख़बर", "कैसी ख़बर" से होगी मोटी कमाई, इसे मापती-तौलती मीडिया


नेता-मंत्री-अफसर-धनपति के इशारे पर आगे-पीछे डोलती मीडिया


ये जो मीडिया है, ये जो मीडिया है


मत पूछो इसने क्या-क्या किया है


बड़े ही खूबसूरती व मासूमियत के साथ


देश और दुनिया को तहस-नहस किया है


सदियों की सभ्यता-संस्कृति को


चंद लम्हों में ख़ाक किया है।


आम आदमी की गर्दन मरोड़ती मीडिया


लोकतंत्र के महल को तोड़ती मीडिया


चाटुकारिता से ख़ुद को जोड़ती मीडिया


नैतिकता से मुंह मोड़ती मीडिया


सच्चाई को पीछे छोड़ती मीडिया


ये जो मीडिया, ये जो मीडिया है


मत पूछो इसने क्या-क्या किया है


बड़े ही प्यार और मुहब्बत से इसने

लोगों को मुसीबतों का तोहफ़ा दिया है

खामोश! कुछ न कहना इसे

इसने तो बस 'मिशन' को 'कमीशन' किया है.



3 टिप्‍पणियां:

  1. देशभक्तों को आतंकवादी बनाकर
    आतंकवादियों की बात टीवी पर लाईव सुनाकर
    सच को झूठ
    झूठ को सच बनाकर
    क्या करना चाहता है मीडिया तो नहीं कहेंगे इसे

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  2. media itni bhi buri nhi h ager kuch khamiya hai to achaiye bhi hai media ki...kuch logo k liye puri media ko badnaam krna thik nhi hai.

    जवाब देंहटाएं

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