शुक्रवार, 5 दिसंबर 2008

आतंकवाद की जड़ हमारे आपके घर में

२६/११/२००८ को मुंबई में आतंकवाद का खूनी खेल! देश की सबसे बड़ी आतंकवादी घटना। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और प्रिंट मीडिया का सनसनी फैलाने और दिल दहलाने वाली खबरें और तस्वीरें। एक ही ख़बर को सबसे हटकर पेश करने की चैनलों में होड़। और फिर एक ही ख़बर को बार-बार परोसने का सिलसिला। एक -एक ख़बर को बारीकी से दिखाना। इस काम में कंप्यूटर और अन्य आधुनिक यंत्रों की मदद भी खूब लिया जाता है। नेताओं-मंत्रिओं और आम जनता के इस घटना पर तरह-तरह के बयानबाजी का प्रसारण। और इस तरह टीवी पर परोसी जाने वाली खबरें बन जाती हैं--मनोरंजन।
ख़बरों को पेश करनेवाले खबरनवीशों को क्या यह ख़बर है की हिंसात्मक ख़बरों के टेलिविज़न पर प्रसारण के इन तरीकों का देश के नौनिहालों के मन-मस्तिष्क पर क्या प्रभाव पड़ रहा है? मुनिश्री तरुन्सागर ठीक ही कहते हैं कि "आज विभिन्न चैनलों द्वारा जो सांस्कृतिक हमले हो रहे हैं वे ओसामा बिन लादेन जैसे आतंकवादियों के हमले से भी ज्यादा खतरनाक हैं।" वैसे समाजशास्त्री नील पोस्टमैन का विचार भी सही है: "टीवी गंभीर मसले को भी मनोरंजन के थाल में सजाकर परोसता है, क्योंकि यह उसके स्वभाव में निहित है।
आप माने या न माने आतंकवाद की जड़ हमारे आपके घर में है। क्या आप बता सकते हैं कि एक पचीस साल का युवा बचपन से अब तक कीतनी बार टीवी पर हिंसा-अपराध-बलात्कार की खबरें देखता है??? आप क्या सोच रहें हैं जरूर लिखियेगा।

रविवार, 30 नवंबर 2008

आपका मुन्ना किस टीवी पर गया है???

"कहा जाता है की बच्चे पर माँ का प्रभाव पड़ता है लेकिन आज बच्चा माँ से कम, मीडिया से ज्यादा प्रभावित हो रहा है। कल तक कहा जाता था कि यह बच्चा अपनी माँ पर गया है और यह बाप पर। मगर आज जिस तरह से देशी-विदेशी चैनल हिंसा और अश्लीलता परोस रहे हैं उसे देख कर लगता है कि कल यह कहा जाएगा कि यह बच्चा जी टीवी पर गया है और यह स्टार टीवी पर और यह जो निखट्टू हैं न, यह तो पूरी फै टीवी पर गई है। आज विभिन्न चैनलों द्वारा देश पर जो सांस्कृतिक हमले हो रहे हैं वे ओसामा बिन लादेन जैसे आतंकवादियों के हमले से भी ज्यादा खतरनाक हैं।"