गुरुवार, 5 मार्च 2009
टेलिविज़न : रोग बढ़ाने वाला डॉक्टर
अमेरिकी राष्ट्रिय स्वास्थ्य संस्थान (एन आई एच एल) और कैलिफोर्निया पेसिफिक मेडिकल सेंटर के विशेषज्ञों ने बच्चों और किशोरों पर संचार माध्यमों के प्रभाव का व्यापक अध्ययन किया है. इसके लिए वर्ष १९८० से अब तक की १७३ STUDY रिपोर्टों का व्यापक आकलन करने के बाद यह साफ़ तौर पर ज़ाहिर हुआ है कि संचार माध्यमों के अधिक उपयोग का स्वास्थय पर नकारात्मक असर पड़ता है. अध्ययन से पता चलता है कि जो बच्चे टीवी, म्यूजिक, फिल्म, कंप्यूटर और इन्टरनेट का अधिक इस्तेमाल करते हैं उनमे मोटापा बढ़ने, धुम्रपान की लत पड़ने और कम उम्र में यौन गतिविधियों में संलिप्त होने की संभावना रहती है.
ब्रिटिश सोशल ATTITUDE रिपोर्ट के अनुसार नियमित रूप से टीवी देखने वाले देखनेवाले दर्शकों में से ५७% दर्शकों ने स्वीकार किया है कि उनका स्वास्थय खराब रहता है. दूसरी तरफ ५९% लोग जो कि कभे-कभार टीवी देखते हैं, का स्वास्थय काफी अच्छा पाया गया. रिपोर्ट से ज़ाहिर हुआ है कि अधिक टीवी देखने से आँखें थक जाती है, रोशनी कमज़ोर होती है और स्थूलता बढ़ सकती है, साथ ही स्वास्थय संबन्धी अन्य विकार पैदा हो सकते हैं.
अमेरिका के बोस्टन विश्ववद्यालय में हुए एक अध्ययन के अनुसार जो लोग अपने खाली वक़्त को टेलिविज़न देखने में बिताते हैं, उन्हें टाइप-२ मधुमेह होने की आशंका बढ़ जाती है. यह अध्ययन महिलाओं के सन्दर्भ में किया गया था परन्तु इसके निष्कर्ष पुरुषों पर भी लागू होते हैं. अध्ययन में शामिल अधिकतर महिलाओं का कहना था कि टीवी कार्यकर्मों को देखने के कारन वे वंचित शारीरिक गतिविधियों नहीं कर पाती. अध्ययन करने वालों के अनुसार जो लोग प्रति सप्ताह पांच घंटे तेजी से टहलते हैं या व्यायाम करते हैं, उनमें मधुमेह होने की संभावना कम हो जाती है. ऐसा करने से शारीर का मेटाबोलिस्म सही रहता है और पैनक्रियाज पर्याप्त मात्र में इंसुलीन बनाता है.
रविवार, 1 मार्च 2009
२ रुपुए प्रति मिनट में दोस्त: मोबाइल कम्पनियों और मीडिया का नया धंधा
दोस्त बनायें २ रुपये प्रति मिनट में----फलना मोबाइल
make friends all over india Rs २/min---- चिलना मोबाइल
दोस्त बनायें* खट्टी मीठी बातें -----ढेकना मोबाइल
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दोस्तों! ये है कुछ मोबाइल कंपनियों का विज्ञापन। हम कृष्ण-सुदामा जैसे दोस्त का उदाहरण देकर एक आदर्श मित्रता की बात करते रहे हैं। तुलसीदास ने भी लिखा--धीरज धर्म मित्र अरु नारी, आपति काल परेखाऊ चारि ।
लेकिन अब मोबाइल और इन्टरनेट का युग है। और अब दोस्त २ रुपये प्रति मिनट और ३० रुपये प्रति माह के दर पर बनाए जा रहे हैं। मीडिया जिसे जनजागरूकता का मध्यम और लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ माना जाता है, ने भी देश के युवाओं को गुमराह कर दोस्त बनाने के धंधे में शामिल हो गई है. जरा एक अखबार के ख़ुद के इस विज्ञापन की झलक ख़ुद पढ़ लें---
चटपटी CHAT से मसालेदार DATE तक----------------------------------------------**कैसे लें CHAT का आनंद? मोबाइल पर टाइप करें-----और फलना नम्बर पर भेजें. ##किसके साथ लेना चाहेंगे चटपटी CHAT का लुत्फ़. अपना साथी चुनने के लिए टाइप करें------और फलना नम्बर पर भेजें.@@चटखारे भरें और मौज लें अपने संदेश अपने नाम के साथ टाइप करके फलना नम्बर पर भेजें. ++जब जी ना भरे जब तलाश हो कुछ और साथियों की CHAT के लिए तो टाइप करें नेक्स्ट और फलना नम्बर पर भेजें.
दोस्तों! बड़ी बात यह है कि किस- किस मोबाइल पर अखबार की यह सेवा उपलब्ध है इसका खुला विवरण अखबार में छपा है. विभिन्न अख़बारों में कुछ और छोटे-छोटे विज्ञापनों की झलकियाँ देखें-----@@@मजेदार बातें फलना नम्बर पर साथ में एक लडकी का फोटो
@@@FRIENDSHIP LINE चिलना नम्बर पर
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@@@FRIENDSHIP IN YOUR CITY
DATING CHATTING RAMANCE फलना नम्बर पर
@@@मीठी बातें----चिलना नम्बर पर
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इन सब का परिणाम जानने के लिए देश भर की अखबारें खंगालिए. रोजाना आत्महत्या करते छात्र- छात्राएं, प्रेम प्रसंगों के चक्कर में पड़कर जेल की हवा खाते नाबालिग़ लड़के और लडकियां, प्रेमी-प्रेमिकाओं की हत्या सरीखे कई खबरें पढने को मिल सकती हैं. देश के युवों का कीमती समय और पैसा बर्वाद हो ही रहा है. मगर हम हैं कि सोये पड़े हैं. न सरकार को इन चीजों पर नज़र है और न देश के अभिभावकों को .