गुरुवार, 18 दिसंबर 2008

जीवन में ज़हर घोलती मीडिया

देश की संस्कृति को रौंद पश्चिम की बोल बोलती मीडिया


पत्रकारिता से आ गये हैं कितनी दूर ख़ुद अपनी पोल खोलती मीडिया


सूचना-शिक्षा-मनोरंजन के बहाने, जीवन में ज़हर घोलती मीडिया


"किसकी ख़बर", "कैसी ख़बर" से होगी मोटी कमाई, इसे मापती-तौलती मीडिया


नेता-मंत्री-अफसर-धनपति के इशारे पर आगे-पीछे डोलती मीडिया


ये जो मीडिया है, ये जो मीडिया है


मत पूछो इसने क्या-क्या किया है


बड़े ही खूबसूरती व मासूमियत के साथ


देश और दुनिया को तहस-नहस किया है


सदियों की सभ्यता-संस्कृति को


चंद लम्हों में ख़ाक किया है।


आम आदमी की गर्दन मरोड़ती मीडिया


लोकतंत्र के महल को तोड़ती मीडिया


चाटुकारिता से ख़ुद को जोड़ती मीडिया


नैतिकता से मुंह मोड़ती मीडिया


सच्चाई को पीछे छोड़ती मीडिया


ये जो मीडिया, ये जो मीडिया है


मत पूछो इसने क्या-क्या किया है


बड़े ही प्यार और मुहब्बत से इसने

लोगों को मुसीबतों का तोहफ़ा दिया है

खामोश! कुछ न कहना इसे

इसने तो बस 'मिशन' को 'कमीशन' किया है.



बुधवार, 10 दिसंबर 2008

इन्टरनेट पर साइबर सेक्स स्वस्थ जीवन के लिए खतरनाक!!!

एक तोते को रटाया जा रहा था- शिकारी आएगा...जाल बिछायेगा...दाना डालेगा...तुम उसमें फँसना नहीं... तोते ने तो रट लिया मगर व्यावहारिक ज्ञान न होने के चलते जाल में फंस गया और तब भी वह रट लगा रहा था-शिकारी आएगा........
आज दुनिया भर के लोगों को फंसाने के लिए जाल बुने जा चुके हैं. बच्चे, युवा और बूढे सभी इसकी गिरफ्त में निरंतर फंसते चले जा रहे हैं और दूर-दूर तक इससे निकलने की संभावना नजर नहीं आ रही. ये जाल से निकलना भी क्यों चाहेंगे जब इन्हें सेक्स चैटिंग और सेक्स वेबसाइट्स का दाना चुगने में मज़ा जो आने लगा है.
जी हाँ! हम www यानी वर्ल्ड वाइड वेब यानी विश्वव्यापी जाल की बात कर रहे हैं। देश के नौनिहाल इन्टरनेट के जाल में फंसकर अपना भविष्य धूमिल कर रहे हैं। वे इन्टरनेट पर सेक्स चैटिंग और अश्लील वेबसाइट्स की सर्फिंग कर रहे हैं. ब्रिन्तैन में एक सर्वेक्षण से पता चला है के हर दसवां बच्चा सेक्स चैटिंग अवश्य करता है. यह सर्वेक्षण साफ इशारा करता है के बच्चों के सामाजिक जीवन मूल्य ग़लत दिशा में जा रहे हैं. हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान (NIHL) और कैलिफोर्निया पैसिफिक मेडिकल सेंटर के विशेषज्ञों ने 1980 से अब तक की 173 स्टडी रिपोर्टों के व्यापक आकलन के आधार पर निष्कर्ष निकाला है की टीवी, कंप्यूटर और इन्टरनेट बच्चों को धूम्रपान की लत एवं यौन गतिविधियों में भी संलिप्त करने में मुख्य रूप से सहायक साबित हो रहे हैं. कई मनो चिकित्सक इन्टरनेट की लत को एक तरह की मनोदैहिक रोग बता रहे हैं. उनका कहना है की इससे लोगों की सहनशीलता कम हो जाती है और उत्तेजना बढ़ जाती है. निर्णय लेने की उसकी क्षमता घाट जाती है और वह समाज से काटकर जीने लगता है. इन्टरनेट अधिक उपयोग करने वाले लोगों के बीच कराये गये अध्ययनों से पता चला है कि लोग इन्टरनेट के चलते सेक्स एडिक्शन एवं सेक्स एनोरेक्सिया जैसी समस्याओं के शिकार हो रहे हैं।
सेक्स एडिक्शन से ग्रस्त व्यक्ति बच्चों और महिलाओं से छेड़छाड़, व्यभिचार और बलात्कार जैसे कुकृत्यों में भी लगे हो सकते हैं. वहीँ सेक्स एनोरेक्सिया का शिकार व्यक्ति अपने जीवन में मानसिक-शारीरिक स्तर पर यौन इच्छाओं और यौन संबंधों से परहेज करने लगता है.
किन्सी इंस्टीच्युट फॉर रिसर्च इन सेक्स, जेंडर एंड रिप्रोडक्शन की निदेशक जूलिया हीमैन ने नेट प्रेरित एकल सेक्स प्रक्रिया को ज्यादा चिंताजनक बताया है। अमेरिका के सेक्स विशेषज्ञों के विचार में साइबर सेक्स सामाजिक रूप से व्यर्थ और हिंसक संस्कृति उत्पन्न करने का माध्यम है.
एक अन्य सर्वेक्षण के अनुसार इन्टरनेट उपयोगकर्ताओं में अमेरिका का स्थान पूरे विश्व में पहला और भारत का दसवां स्थान है. अमेरिका में यौन समस्याओं और यौन अपराधों में तेज़ी से इज़ाफा हो रहा है. आने वाले समय में भारत जैसे विश्व के दूसरी बड़ी जनसँख्या वाले देश के युवाओं पर इन्टरनेट का दुष्प्रभाव और भयानक हो सकता है. इसलिए देश की सरकार और आमलोगों को जागरूक होने की जरुरत है.

शुक्रवार, 5 दिसंबर 2008

आतंकवाद की जड़ हमारे आपके घर में

२६/११/२००८ को मुंबई में आतंकवाद का खूनी खेल! देश की सबसे बड़ी आतंकवादी घटना। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और प्रिंट मीडिया का सनसनी फैलाने और दिल दहलाने वाली खबरें और तस्वीरें। एक ही ख़बर को सबसे हटकर पेश करने की चैनलों में होड़। और फिर एक ही ख़बर को बार-बार परोसने का सिलसिला। एक -एक ख़बर को बारीकी से दिखाना। इस काम में कंप्यूटर और अन्य आधुनिक यंत्रों की मदद भी खूब लिया जाता है। नेताओं-मंत्रिओं और आम जनता के इस घटना पर तरह-तरह के बयानबाजी का प्रसारण। और इस तरह टीवी पर परोसी जाने वाली खबरें बन जाती हैं--मनोरंजन।
ख़बरों को पेश करनेवाले खबरनवीशों को क्या यह ख़बर है की हिंसात्मक ख़बरों के टेलिविज़न पर प्रसारण के इन तरीकों का देश के नौनिहालों के मन-मस्तिष्क पर क्या प्रभाव पड़ रहा है? मुनिश्री तरुन्सागर ठीक ही कहते हैं कि "आज विभिन्न चैनलों द्वारा जो सांस्कृतिक हमले हो रहे हैं वे ओसामा बिन लादेन जैसे आतंकवादियों के हमले से भी ज्यादा खतरनाक हैं।" वैसे समाजशास्त्री नील पोस्टमैन का विचार भी सही है: "टीवी गंभीर मसले को भी मनोरंजन के थाल में सजाकर परोसता है, क्योंकि यह उसके स्वभाव में निहित है।
आप माने या न माने आतंकवाद की जड़ हमारे आपके घर में है। क्या आप बता सकते हैं कि एक पचीस साल का युवा बचपन से अब तक कीतनी बार टीवी पर हिंसा-अपराध-बलात्कार की खबरें देखता है??? आप क्या सोच रहें हैं जरूर लिखियेगा।

रविवार, 30 नवंबर 2008

आपका मुन्ना किस टीवी पर गया है???

"कहा जाता है की बच्चे पर माँ का प्रभाव पड़ता है लेकिन आज बच्चा माँ से कम, मीडिया से ज्यादा प्रभावित हो रहा है। कल तक कहा जाता था कि यह बच्चा अपनी माँ पर गया है और यह बाप पर। मगर आज जिस तरह से देशी-विदेशी चैनल हिंसा और अश्लीलता परोस रहे हैं उसे देख कर लगता है कि कल यह कहा जाएगा कि यह बच्चा जी टीवी पर गया है और यह स्टार टीवी पर और यह जो निखट्टू हैं न, यह तो पूरी फै टीवी पर गई है। आज विभिन्न चैनलों द्वारा देश पर जो सांस्कृतिक हमले हो रहे हैं वे ओसामा बिन लादेन जैसे आतंकवादियों के हमले से भी ज्यादा खतरनाक हैं।"

शनिवार, 29 नवंबर 2008

क्या आप होश में हैं?


पारिवारिक संबंधों में ज़हर घोलते---सीरियल


विभत्स आपराधिक घटनाओं को मनोरंजन बनाती---खबरें


अपराध-अश्लीलता का पाठ पढाती---फिल्में तन-मन-जीवन को बीमार बनाते---विज्ञापन


सांस्कृतिक मूल्यों को ध्वस्त करते---प्रोग्राम


कीमती समय को निगलते खेल बनाम व्यापार--क्रिकेट प्रसारण
जरा सोचिये....टीवी देखकर टाइम पास करना कितना खतरनाक हो सकता है!!!!!

बुधवार, 26 नवंबर 2008

जी हाँ... मौत को निगल रहे हैं आप?

गुटखा, तम्बाकू , और सिगरेट के दुष्परिणाम आप ख़ुद देखिये.....









शनिवार, 22 नवंबर 2008

आपका घर : अपराध का पाठशाला???

अपने मुन्ना-मुन्नी को
खिलौने वाला बन्दूक खरीदकर देना

बचपन से ही टीवी और सिनेमा पर
हिंसात्मक दृश्य दिखलाने की आदत डालना
अख़बारों में निरंतर नकारात्मक खबरें पढ़ते रहना





दिवाली और अन्य अवसरों पर बम पटाखे छोड़ने की आदत डलवाना
और इस तरह आपके बच्चे बन जाते हैं…

एक खतरनाक अपराधी…

क्या आप होश में हैं?

शुक्रवार, 21 नवंबर 2008

बेहोशी की नई दवा: क्या आपको मालूम?

एक ज़माना था

जब किसी को कुछ पल के लिएबेहोश करने के

लिएक्लोरोफार्म सुंघाया जाता था…


फिर एक ज़माना आया…
जब कुछ घंटों के लिए किसी को
बेहोश करने के लिए ….नशीली दवा और इंजेक्शन का प्रयोग किया जाने लगा…..


…और एक ज़माना यह है…
न क्लोरोफार्म…न दवा …न कोई इंजेक्शन…
अब किसी को बेहोश करने के लिए चाहिए
बस एक टेलिविज़न …..
सिनेमा, सीरियल या फिर क्रिकेट दिखाते रहिये
वे घंटे दो घंटे नहीं…सालों बेहोश रह सकते हैं….