रविवार, 28 जून 2009

सावधान! बच्चे वयस्क हो रहे हैं.....

"अपहरण" फ़िल्म देखकर अपहरण की योजना


साभार: प्रभात ख़बर

सिनेमा में हत्या=हकीकत में हत्या!!!



साभार: हिंदुस्तान

हर छोटे -बड़े शहर में सिनेमाघर। घर-घर और झोपड़पट्टी तक में टीवी नाम का छोटा सा मगर एक खतरनाक कृत्रिम प्राणी मौजूद है. टीवी---जो बंद रहने पर बड़ा ही मासूम नजर आता है, परन्तु जब खुलता है तो छोटे-बड़े सबकी बुद्धि पर ताला पड़ जाता है.
आज टीवी और टीवी पर चलने वाला सिनेमा मासूम बच्चों को वयस्क बना रहा है. टीवी पर खुल्लमखुल्ला जो अपराध, हिंसा, सेक्स और अपसंस्कृतियों को परोसे जा रहे है, वे बच्चों को उनकी आयु से पहले ही वयस्क बना रहे हैं।
फ्लोरेंस विश्वविद्यालय के अनुसन्धानकर्ताओं के भी यही विचार हैं. २००४ में छः से बारह वर्ष के लगभग ७४ बच्चों पर किये गए एक अध्ययन से यह स्पष्ट हुआ है कि रोज करीब तीन घंटे टीवी देखने वाले बच्चों में परिपक्वता के लक्षण ज्यादा आसानी से देखे जा सकते हैं। जब इन्हीं बच्चों को ७ दिन तक टीवी देखने से वंचित कर दिया गया तो सभी के शरीर में मेलाटोनिन हार्मोन की मात्र बढ़ने लगी. यह हार्मोन बच्चों में शारीरिक परिपक्वता के बढ़ते ग्राफ को थामता है. टस्कन शहर के कैवरिग्लिया में कराये गए एक अध्ययन से पता चला है कि जो बच्चे टीवी, कंप्यूटर या विडियो नहीं देख पाते है उनमे मेलाटोनिन हार्मोन बहुत तेजी से बढ़ते हैं.
आज जिस तरह देश और दुनिया में बच्चों का अपराध, हिंसा और सेक्स में लिप्तता बढ़ रही है, ये अध्ययन सही सिद्ध हो रहे हैं। २००५ में झारखण्ड के देवघर शहर में तीन छोटे-छोटे बच्चो ने महावीर नाम के एक बच्चे को चाकू से गोदकर हत्या कर दी. इन बच्चों ने पुलिस को बताया कि सिनेमा में तो हत्या करने पर अपराधी को पुलिस नहीं पकड़ती है. मतलब सिनेमा के हिसाब से हत्या एक सामान्य कार्य है, जिसके लिए कोई सजा नहीं दी जाती है. और मतलब यह भी कि टीवी और सिनेमा आहिस्ता- आहिस्ता बच्चों के दिमाग में घोर आपराधिक कृत्य को भी सामान्य घटना के रूप में स्थापित कर देती है.
हाल में ही बिहार की राजधानी पटना की पीसी कालोनी से एक नौ साल के बच्चे सत्यम का अपहरण कर गला घोंटकर हत्या कर दी गई। घटना को अंजाम उसी के पड़ोस के दो नाबालिग़ लड़कों ने दिया. ये दो लड़के अविनाश और खुर्शीद ने पुलिस को अपने बयान में बताया हैं कि उन्होंने "अपहरण" फिल्म देखकर अपहरण की योजना बनायी थी.
अब वक़्त आ गया है कि हम अपने बच्चों को नकारात्मक फिल्मों और धारावाहिकों को देखने से रोकें. सरकार को भी अपराध, हिंसा और सेक्स परोसने वाली फिल्मों और धारावाहिकों पर सख्ती से रोक लगानी चाहिए.