"तारे ज़मीं पे" के बाद "थ्री इडियट्स" एक बार पुनः शिक्षा जगत
को मनोरंजक तरीके से सही रास्ता दिखाती एक बेहतरीन फिल्म।
आज जब वैज्ञानिक और शिक्षाविद यशपाल की सिफारिश पर सी० बी ० एस० ई०
दशवीं की बोर्ड परीक्षा हटाने की और बढ़ रही थी यह कहते हुए कि छात्रों में दशवीं में असफल होने की स्थिति में आत्महत्या की समस्या बढ़ रही है, ' थ्री इडियट्स' ने छात्रों में आत्महत्या के सही कारणों को शिक्षाविदों, शिक्षकों, अभिभावकों के सामने रखने का ईमानदार प्रयास किया है। इसके लिए फिल्म के निर्माता, निदेशक और तमाम कलाकार को साधुवाद! निश्चय ही ऐसी फ़िल्में समाज की दशा ठीक कर एक नई दिशा देने में सफल होंगी।
आज भारत के अधिकांश अभिभावक अपने बच्चों को अपनी मर्जी की शिक्षा थोपते हैं। उनसे पूछते नहीं कि तुम्हें क्या बनना है। वे अपनी इच्छा से अपने बच्चों को डॉक्टर या इंजिनियर बनाने का प्रयास करते हैं। यह सही है कि आंतरिक इच्छा के बिना कोई भी छात्र अपने लक्ष्य को पाने में सफल नहीं हो सकता। फिल्म इस और भी इशारा करता है कि अभिभावक या शिक्षक बच्चों पर अपनी इच्छाएं और अपेक्षाएं थोपें नहीं बल्कि उन्हें अपनी मर्जी से अपने विषय और लक्ष्य को चुनने में सहायता करें। ऐसा न करने की स्थिति में ही बच्चे परीक्षाओं में कम अंक लाते हैं, असफल होते हैं और आत्महत्या की ओर अग्रसर होते हैं।
धन्यवाद "थ्री इडियट्स"!
फिल्मों से समाज नहीं बदलते.
जवाब देंहटाएंदेखें, अच्छी लगी तो अच्छा वर्ना जय रामजी की.