प्रिया युवाओं! दिल से आपको ढेर सारा प्यार।
लियो टाल्सटॉय ने कहा था--अगर कोई स्वर्ग है तो प्यार ही वहां जाने का रास्ता है. ...तो क्या प्यार के चक्कर में पड़कर खुदखुशी कर रहे युवा लड़के-लडकियां जो जवानी में ही स्वर्ग सिधार रहे हैं, उन पर यह कथन लागू मान लिया जाय??? हम फिल्मी प्यार के चक्कर में पड़ गए हैं. यहाँ हम प्रस्तुत कर रहे हैं, प्रेम पर संतों और विद्वानों के विचार। आशा है हम प्रेम के सच्चे स्वरुप को समझ पाएंगे.
लियो टाल्सटॉय ने कहा---"यह कहना पूरी ज़िन्दगी आप सिर्फ़ एक को प्यार करेंग थी वैसे ही है जैसे यह कहना कि आपकी पूरी ज़िन्दगी तक एक ही मोमबत्ती जलती रहेगी।" प्रोर्तियस ने कहा---- "प्रेम में प्रत्येक व्यक्ति अँधा होता है।"अकबर इलाहाबादी ने कहा--- "खुदा महफूज़ रखे आपको तीनों बलाओं से,तबीबों, वकीलों से, हसीनों की निगाहों से।" प्लेटो ने कहा----"प्रेम एक गंभीर मानसिक रोग है।" मलूकदास ने कहा--- "सुंदर देही देखि कई, उपजत है अनुराग।MADHI न होती चाम की, तो जीवन खाते काग। "एक विद्वान् ने कहा---"प्रेम में गिरावट तब आती है, जब एक-दूसरे 'को' चाहने के बजाय एक-दूसरे 'से' चाहने लगते हैं।"
मुकेश जोशी ने "अहा! ज़िन्दगी" पत्रिका में लिखा---- "अन्दर की पटरियों पर 143 की मेट्रो ट्रेनें धकधक दौड़ रही है। 143 बोले तो I LOVE YOU. इस भागा-दौडी के समय में इतना धैर्य किसके पास है जो I LOVE YOU जैसा लंबा जुमला उछाले, इसलिए इसे भी 'अंकगणित' में बदल दिया गया और यह हो गया 143. इधर से 143 तो उधर से 143 बस हो गया प्रेम. आज बाबा कबीर होते तो अपने ढाई अक्षरों को १४३ में बदलते देख कहते---दिया कबीरा रोय."
किसी शायर ने कहा---" तुम मसर्रत का कहो या इस गम का रिश्ता,कहते हैं प्यार का रिश्ता है जनम का रिश्ता,है जनम का जो ये रिश्ता तो बदलता क्यूँ है,कोई ये कैसे बताये कि वो तनहा क्यूँ है?"हिन्दुस्तान में एक पत्रकार ने लिखा----" एक बार किसी ने फूल से कहा कितू आज तक क्यों खिलता रहा,तूने तो दी सबको खुशबूतुझे क्या मिलता रहा?फूल ने मुस्कुरा कर कहा कि देने के बदले कुछ लेना तो व्यापार है,जो देकर भी कुछ न मांगे, वही सच्चा प्यार है."
स्वामी विवेकानंद ने कहा----"प्रेम का त्रिकोण होता है--पहला कोण---प्रेम भिखारी नहीं होता. प्रेम कभी मांगता नहीं. प्रेम प्रश्न नहीं करता. प्रेम सब कुछ अर्पित कर देता है. दूसरा कोण---प्रेम भय नहीं जनता. प्रेम में भय नहीं होता. तीसरा कोण---प्रेम के लिए प्रेम. प्रेम में स्वयं अपना साध्य है. प्रेम कभी साधन नहीं बन सकता."
अलबर्ट आइन्स्टीन के कथन में प्रेम शब्द नहीं परन्तु इसकी सच्ची अभिव्यक्ति मिलती है----"मैं तो प्रतिदिन यह अनुभव करता हूँ कि मेरे भीतरी और बाहरी जीवन के निर्माण में कितने अनगिनत व्यक्तियों के श्रम का हाथ रहा है. इस अनुभूति से उद्दीप्त मेरा अंतःकरण कितना छटपटाता है कि मैं कम से कम इतना तो विश्व को दे सकूं, जितना कि मैंने उससे अभी तक लिया है." यह भी पढ़ें--VALANTINE DAY'S SPECIAL ---१
VALANTINE DAY'S SPECIAL----२
VALANTINE DAY'S SPECIAL ---३
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